होता है दिले-सोज़ ब-जां साज़े-महब्बत
उठती है इसी साज़ से आवाज़े-महब्बत

मैं रात के सन्नाटे में सुनता हूँ लगातार
तासीर में डूबी हुई आवाज़े-महब्बत

बजते हैं मिरे कान कि आती है कहीं से
आवाज़े-महब्बत पसे-आवाज़े-महब्बत

करता हूँ मैं आवाज़े-महब्बत का तआकुब
और मेरे तआकुब में है आवाज़े-महब्बत

कुछ है भी इस आवाज़ के पर्दे में कि यारब
आवाज़ ही आवाज़ है आवाज़े-महब्बत

आवाज़े-महब्बत तो है दुनिया से मुखातिब
दुनिया ही नहीं गोशे-बर आवाज़े-महब्बत

शोरिश गहे दुनिया में कि दुनिया है हवस की
बे-वक़्त की आवाज़ है आवाज़े-महब्बत

वो वक़्त न क्या आयेगा दुनिया में ‘वफ़ा’ अब
जब वक़्त की आवाज़ थी आवाज़े-महब्बत।

By shayar

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