बहुत आगाज़ देखे हैं बहुत अंजाम देखे हैं
बहुत नक़्शे तिरे ऐ गर्दिशे-अय्याम देखै हैं

रपट जिन सूफियों ने की है मेरे बदखरोशी की
कुछ उन में हम-प्याला दोस्तों के नाम देखे हैं

ये आलम आलमे-इम्कां है मुमकिन है यहां ये भी
ज़बू-आगाज़ भी अक्सर निको-अंजाम देखे हैं।

By shayar

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