बजा हो गया हां बजा हो गया
महब्बत में जो हो गया हो गया

असर नालाए-दर्द का हो गया
वो बे-दर्द, दर्द-आश्ना हो गया

अगर जान जाती रही ग़म नहीं
महब्बत का हक़ तो अदा हो गया

वहां रश्क़े-गुलज़ार है बज़्मे-ऐश
यहां जख़्मे-दिल फिर हरा हो गया

ये डाले तिरे हुस्न में तफ़रिक़े
मिरा दिल भी मुझ से जुदा हो गया

कोई दाद-ख़ाहों की सुनता नहीं
वो बुत रोज़े-महशर ख़ुदा हो गया

मिरे दर्दे-दिल की दवा हो गई
मिरा दर्दे-दिल ला-दवा हो गया

ज़माने से रस्मे-वफ़ा उठ गई
ज़माना बड़ा बे-वफ़ा हो गया

‘वफ़ा’ जान देते तो हो तुम मगर
अगर वा’दा उनका वफ़ा हो गया।

By shayar

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