तुम्हारी निगह दिल को बहला गई
इशारों इशारों में समझा गई

गिरीं बिजलियों खिरमने-सब्र पर
अदाएं तबस्सुम ग़ज़ब ढा गई

जिगर का हुआ हाल दिल की तरह
इसे भी किसी की नज़र खा गई

भभूका थी आहे-सहर-गाह भी
जिधर से गई आग बरसा गई

गया मरने पर भी न दीवाना-पन
मिरी रूह भी सुए-सहरा गई

ग़ज़ब की है दाद-आफ़रीं तेरी याद
जब आई मिरे दिल को तड़पा गई

‘वफ़ा’ लग गया जी को आज़ारे-इश्क़
जवानी के बदले क़ज़ा आ गई।

By shayar

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