टीपे-ग़म का सोज़े-जिगर का अज़ाब
क़यामत है आठों पहर का अज़ाब

दिया भी तो दिल किस दिल-आज़ार को
लिया भी तो क्या उम्र भर का अज़ाब

कहां पाने देता है जीने का लुत्फ़
ये हर दम का, मरने के डर का अज़ाब

निशाते-शबो-रोज़ तुझ को नसीब
मिरा हिस्सा, शामो-सहर का अज़ाब

मुक़द्दर हुआ बे-ज़रों को ‘वफ़ा’
हवा-खाहिए-अहले-ज़र का अज़ाब।

By shayar

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