जवानी में तबीअत ला-उबाली होती जाती है
तरक़्क़ी पर मिरी शोरीदा-हाली होती जाती है

शब-ए-ग़म छाया जाता है धुआँ आहों के शो’लों से
सितारे टूटते हैं रात काली होती जाती है

उमीदें आती हैं आ आ के दिल से निकली जाती हैं
ये वो बस्ती है जो बस बस के ख़ाली होती जाती है

खिले जाते हैं गुल मक़्तल में क्या क्या अक्स-ए-आरिज़ से
किसी की तेग़ भी फूलों की डाली होती जाती है

वो सुन कर हाल-ए-फुर्क़त होगा होगा कहते जाते हैं
कहानी मेरी माज़ी एहतिमाली होती जाती है

मिले हैं सुनने वाले दिल के पत्थर ऐ ‘वफ़ा’ ऐसे
कि शर्मिंदा मिरी नाज़ुक-ख़याली होती जाती है।

By shayar

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