ले गई मुझ से सुकूने-क़ल्ब-ओ-जां बेटे की मौत
दे गई मुझ को अज़ाबे-जां स्तां बेटे की मौत
किस क़दर थे आह ख़ुश-आइंद मुस्तक़बिल के ख़ाब
किस क़दर थी दूर अज़ वहम-ओ-गुमां बेटे की मौत
इस लिए दस साल पहले ही किनारा कर गई
देखती किस आंख से ‘बावा’ की मां बेटे की मौत
पाप की बस्ती भले वक़्तों में कहते थे उसे
बाप की आंखों के आगे हो जहां बेटे की मौत
बाप जल इकलौते बेटे का हो बाप उस के लिए
है नज़ूल-ए-सद-बलाए नागहां बेटे की मौत
ज़िन्दगी भर दिल से जाने का नहीं बेटे का ग़म
ज़िन्दगी भर मुझ पे गुज़रेगी गरां बेटे की मौत
इस से बढ़ कर बद-नसीबी और क्या होगी ‘वफ़ा’
बाप की आंखों के आगे हो जवां बेटे की मौत।