चली तफरीक़ की ऐसी हवा रंगे चमन बिगड़ा
फज़ाए सब्ज़ा बिगड़ी मंज़िरे-सर्वो-समन बिगड़ा

गुलों पर शिद्दतें-जौरे-खजां से क्या बनी या रब
कि अंदाज़े-नवाए-अंदलीबे-नग़मा-ज़न बिगड़ा

बनाया सब को फिर कुछ इस तरह उस शोख़ पुरक़न ने
हर अहले-अंजुमन से फिर अहले-अंजुमन बिगड़ा

बिगड़ने की वबा फैली है इस दिल के बिगड़ने से
जो दिल बिगड़ा, नज़र बिगड़ी, ज़बां बिगड़ी, दहन बिगड़ा

बिगाड़ ऐसा न देखा था पहले इन आंखों ने
दिमागे-शैख़ बिगड़ा और मिजाज़े- बरहमन बिगड़ा

न अब तादीब में शफक़त न शोख़ी में अदब बाक़ी
बुज़ुर्गों की रविश बिगड़ी, अज़ीजो का चमन बिगड़ा

अज़ाबे-जां हुई हैं बेड़ियां आखिर ग़ुलामी की
नज़र आता है अब कुछ ऐ ‘वफ़ा’ हाले-वतन बिगड़ा।

By shayar

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