ऐ कि हर दिल पर है अज़मत नक़्श तेरे नाम की
इब्तिदा करते हैं तेरे नाम से हर काम की।

तेरे फैज़े-आ’म से मामूर हैं कोन-ओ-मकां
धूम है कोन-ओ-मकां में तेरे फैज़े-आ’म की।

ये है क्या मुश्किल कि तेरी इक निगाहे-मेहर से
बे असर हो जाए गर्दिश चरख़े-नीली फ़ाम की।

ये भी है इक मोजिज़ा तेरी मुक़द्दस याद का
हो गई काफ़ूर मायूसी दिले-नाकाम की।

By shayar

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