ऐसे इंक़लाब अक्सर राएगां ही जाते हैं
जो निज़ामे-आलम में किस्तवार आते हैं
बद उसूल, बद बातन, बद चलन दुश्मन
जब भी दनदनाते थे अब भी दनदनाते हैं
खून देने वालों को पूछता नहीं कोई
दूध पीने वाले अब मर्तबे भी पाते हैं
दुश्मनों से सहवन भी जो कभी न खाते हम
दोस्तों से दानिश्ता वो फ़रेब खाते हैं।