है तेरे जल्वा-ए-रंगी से उजाली दुनिया
तुझसे आबाद है शाइर की ख़याली दुनिया
नग़्म:-ए-रूहे अमल, बू-ए-गुलिस्तान-ए-हयात
गर्मि-ए-बज़्मे जहाँ शमः-ए-शबिस्तान-ए-हयात
तू है मासूम, तिरी सारी अदाएँ मासूम
इन्तहा ये है कि होती है ख़ताएँ मासूम
हुस्न किरदार निहाँ हुस्न तबीयत में तेरे
मय-ए-सर जोश-ओ-वफ़ा शीशः-ए-इस्मत में तेरे
अपने हाथों से ख़ुदा ने है बनाया तुझको
हम कहेंगे दिल-ए-फ़ितरत की तमन्ना तुझको
माहे-कामिल से तड़प, बर्क़ से ग़ैरत माँगी
सीनः-ए-मिहर से थोड़ी-सी हरारत माँगी
रूह फूलों की बनी, जिससे वह ख़ुशबू लेकर
दिल-ए-शाइर के अमानत थे जो आँसू लेकर
गूँधा क़ुदरत ने तिरी शोख़ तबीयत का ख़मीर
और तिरी ख़ाक के ज़र्रों से मुहब्बत का ख़मीर
दहर में मक़सदे-तख़लीक की हामिले है तू
जिसके आगोश में कुलज़म है, वह साहिल है तू
चढ़ के परवान तेरी गोद से इन्साँ निकला
तूने जिस फूल को सींचा वह गुलिस्ताँ निकला
मानि-ए-लफ़्ज़-ए-सकूँ राज-ए-मुहब्बत है तू
है ये मुज्मल तेरी तारीफ़ कि औरत है तू