इस बाग़ में जो कली नज़र आती है।
तसवीरे-फ़सुर्दगी नज़र आती है॥

कश्मीर में हर हसीन सूरत ‘फ़ानी’।

मिट्टी में मिली हुई नज़र आती है॥

फूलों की नज़र-नवाज़ रंगत देखी,

मख़लूक़ कि दिल-गुदाज़ हालत देखी,

कु़दरत का करिश्मा नज़र आया कश्मीर,

दोज़ख़ में समोई हुई जन्नत देखी॥

दैर में हरम में गुज़रेगी।

उम्र तेरे ही ग़म में गुज़रेगी॥

हाँ नाखू़ने-ग़म कमी न करना।

डरता हूँ कि ज़ख़्मेदिल न भर जाये॥

ग़ैरत हो तो ग़म की जुस्तजू कर।

हिम्मत हो तो बेक़रार हो जा॥

चुन लिया तेरी मुहब्बत ने मुझे।

और दुनिया हाथ मलकर रह गई॥

हूँ असीरे-फ़रेबे-आज़ादी।

पर है और मश्क़े-हीलये-परवाज़

इश्क है परतवे-हुस्ने-महबूब।

आप अपनी ही तमन्ना क्या खू़ब॥

अब लब पै वोह हंगामये-फ़रियाद नहीं है।

अल्लाह रे तेरी याद कि कुछ याद नहीं है॥

हमको मरना भी मयस्सर नहीं जीने के बग़ैर।

मौत ने उम्रे-दो रोज़ा का बहाना चाहा॥

बिजलियाँ शाख़े-नशेमन पै बिछी जाती है।

क्या नशेमन से कोई सोख्ता-सामाँ निकला?

‘फ़ानी’ की ज़िन्दगी भी क्या ज़िन्दगी थी यारब।

मौत और ज़िन्दगी में कुछ फ़र्क़ चाहिए था॥

By shayar

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