अल्लाह रे एतमादे-मुहब्बत कि आज तक।
हर दर्द की दवा है वोह अच्छा किये बगैर॥
निगाहें ढूँढ़ती हैं दोस्तों को और नहीं पाती।
नज़र उठती है जब जिस दोस्त पर पड़ती है दुश्मन पर॥
न इब्तदा की ख़बर है न इन्तहा मालूम।
रहा यह वहम कि हम हैं, सो वोह भी क्या मालूम?
यह ज़िन्दगी की है रूदादे-मुख़्तसिर ‘फ़ानी’!
वजूदे-दर्दे-मुसल्लिम, इलाज ना मालूम॥
किस ज़ाम में है ऐ रहरवेग़म! धोके में न आना मंज़िल के।
यह राह बहुत कुछ छानी है, इस राह में मंज़िल कोई नहीं॥