निश्चय
कितनी रातों की मैंने नहलाई है अंधियारी, धो ड़ाली है संध्या के पीले सेंदुर से…
Read Moreजिन नयनों की विपुल नीलिमा में मिलता नभ का आभास, जिनका सीमित उर करता था…
Read Moreबहती जिस नक्षत्रलोक में निद्रा के श्वासों से बात, रजतरश्मियों के तारों पर बेसुध सी…
Read Moreरजनी ओढे जाती थी झिलमिल तारों की जाली, उसके बिखरे वैभव पर जब रोती थी…
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