श्रृंगार कर ले री सजनि!
श्रृंगार कर ले री सजनि! नव क्षीरनिधि की उर्म्मियों से रजत झीने मेघ सित, मृदु…
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Read Moreपुलक पुलक उर, सिहर सिहर तन, आज नयन आते क्यों भर-भर! सकुच सलज खिलती शेफाली,…
Read Moreतुम्हें बाँध पाती सपने में! तो चिरजीवन-प्यास बुझा लेती उस छोटे क्षण अपने में! पावस-घन…
Read Moreधीरे धीरे उतर क्षितिज से आ वसन्त-रजनी! तारकमय नव वेणीबन्धन शीश-फूल कर शशि का नूतन,…
Read Moreप्रिय इन नयनों का अश्रु-नीर! दुख से आविल सुख से पंकिल, बुदबुद् से स्वप्नों से…
Read Moreस्मित तुम्हारी से छलक यह ज्योत्स्ना अम्लान, जान कब पाई हुआ उसका कहां निर्माण! अचल…
Read Moreवे मधुदिन जिनकी स्मृतियों की धुँधली रेखायें खोईं, चमक उठेंगे इन्द्रधनुष से मेरे विस्मृति के…
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