हरिजन” पद (भजन)
कियौ हरिजन-पद हमैं प्रदान। टेक अन्त्यज, पतित, बहिष्कृत, पादज, पंचम शूद्र महान। संकर बरन और…
Read Moreकियौ हरिजन-पद हमैं प्रदान। टेक अन्त्यज, पतित, बहिष्कृत, पादज, पंचम शूद्र महान। संकर बरन और…
Read Moreबोलो आदि-वंश के भाई, मुल्की हक बँटवइयों कि ना॥टेक बीस कोटि सछूत अछूत हि उहदे…
Read Moreस्वार्थियों की सलाह में आ निज वंश डुबाना ना चहिए. बाप बना गैरों को नस्ल…
Read Moreभेद कोई सन्त पारखी जाने। टेक भरमि-भरमि माया में भटकें, जग में फिरें भुलाने। ब्रह्मजाल…
Read Moreआरति आतम देव की कीजै, ब्रह्म विवेक हृदय धर लीजै॥ परिपूरन को कहँ से आवाहन,…
Read Moreहोरी खेलौ अछूतौ भाई, छुतैरों से छोर छोड़ाई. टेक इनके लोभ फंसे जो भाई, उन्नति…
Read Moreसतगुरु सबहि समझावें, सबन हित होरी रचावें। ज्ञान-गुलाल मले मन मुख पर, अद्धै अबीर लगावें।…
Read Moreअब आदिवंश खेलहु बसंत, सब संत करहु दासता अंत॥ है आदिवंश का आदि-धर्म, तजि आत्म-अनुभवी…
Read Moreसुर्ता अनुभव पद में आन, ज्ञान निर्वाण लहै। यहाँ पक्षपात नहिं कोय, अंध विश्वास दहै॥…
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