दीप मेरे जल अकम्पित,
दीप मेरे जल अकम्पित, घुल अचंचल! सिन्धु का उच्छवास घन है, तड़ित, तम का विकल…
Read Moreदीप मेरे जल अकम्पित, घुल अचंचल! सिन्धु का उच्छवास घन है, तड़ित, तम का विकल…
Read Moreपंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला घेर ले छाया अमा बन आज कंजल-अश्रुओं…
Read Moreहे मेरे चिर सुन्दर-अपने! भेज रही हूँ श्वासें क्षण क्षण, सुभग मिटा देंगी पथ से…
Read Moreशलभ मैं शापमय वर हूँ! किसी का दीप निष्ठुर हूँ! ताज है जलती शिखा चिनगारियाँ…
Read Moreरे पपीहे पी कहाँ? खोजता तू इस क्षितिज से उस क्षितिज तक शून्य अम्बर, लघु…
Read Moreविरह की घडियाँ हुई अलि मधुर मधु की यामिनी सी! दूर के नक्षत्र लगते पुतलियों…
Read Moreप्रिय-पथ के यह मुझे अति प्यारे ही हैं हीरक सी वह याद बनेगा जीवन सोना,…
Read Moreशून्य मन्दिर में बनूँगी आज मैं प्रतिमा तुम्हारी! अर्चना हों शूल भोले, क्षार दृग-जल अर्घ्य…
Read Moreक्यों वह प्रिय आता पार नहीं! शशि के दर्पण देख देख, मैंने सुलझाये तिमिर-केश; गूँथे…
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