मकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है
मकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है ख़ानक़ाहों में कहीं लज़्ज़त-ए-असरार भी है मंज़िल-ए-रह-रवाँ दूर भी…
Read Moreमकतबों में कहीं रानाई-ए-अफ़कार भी है ख़ानक़ाहों में कहीं लज़्ज़त-ए-असरार भी है मंज़िल-ए-रह-रवाँ दूर भी…
Read Moreहादसा वो जो अभी पर्दा-ए-अफ़लाक में है अक्स उस का मेरे आईना-ए-इदराक में है न…
Read Moreख़ुदी की शोख़ी ओ तुंदी में किब्र ओ नाज़ नहीं जे नाज़ हो भी तो…
Read Moreदिल सोज़ से ख़ाली है निगह पाक नहीं है फिर इस में अजब क्या के…
Read Moreफ़ितरत को ख़िरद के रू-ब-रू कर तस्ख़ीर-ए-मक़ाम-ए-रंग-ओ-बू कर तू अपनी ख़ुदी को खो चुका है…
Read Moreअपनी जौलाँ-गाह ज़ेर-ए-आसमाँ समझा था मैं आब ओ गिल के खेल को अपना जहाँ समझा…
Read Moreमेरी निगाह में है मोजज़ात की दुनिया मेरी निगाह में है हादिसात की दुनिया तख़ैयुलात…
Read Moreचमने-ख़ार-ख़ार है दुनिया ख़ूने-सद नौबहार है दुनिया जान लेती है जुस्तजू इसकी दौलते-ज़ेरे-मार है दुनिया…
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