मान भंग
प्यारे परवीन सों पियारी ने पसारी मान, रुठि मुख फेरि बैठी आरसी की ओर है।…
Read Moreजो तरूता को फल दियो छाया करि विस्तार। करत कुठाराघात तेहि इन्धन बेचन हार।। इन्धन…
Read Moreप्यारे आवि गयो मन मेरो। केसे रहिये कपटी जग मे स्वारथ पर बहुतेरो।। रहत धरम…
Read Moreमायामोहिनी के बस भांवरी भरत ताहि मुक्ति दै के भवर बनाया निज अंग है। नीचताइ…
Read Moreअरे मन चंचलता तुम त्याग। भटकहु जनु तुम स्वान सदृष धरु कृष्ण भजन अनुराग।। कबहूं…
Read Moreअलअमाँ मेरे ग़मकदे की शाम। सुर्ख़ शोअ़ला सियाह हो जाये॥ पाक निकले वहाँ से कौन…
Read Moreफिर ‘आरजू’ को दर से उठा, पहले यह बता। आखिर ग़रीब जाये कहाँ और कहाँ…
Read Moreक्यों उसकी यह दिलजोई दिल जिसका दुखाना है। ठहरा के निशाने को क्या तीर लगाना…
Read Moreनालाँ ख़ुद अपने दिल से हूँ दरबाँ को क्या कहूँ। जैसे बिठाया गया है, कोई…
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