लाये कौन सँदेश नये घन !
लाये कौन सँदेश नये घन ! अम्बर गर्वित हो आया नत, चिर निस्पन्द हृदय में…
Read Moreलाये कौन सँदेश नये घन ! अम्बर गर्वित हो आया नत, चिर निस्पन्द हृदय में…
Read Moreयह संध्या फूली सजीली ! आज बुलाती हैं विहगों को नीड़ें बिन बोले; रजनी ने…
Read Moreसब बुझे दीपक जला लूँ! घिर रहा तम आज दीपक-रागिनी अपनी जगा लूँ! क्षितिज-कारा तोड़…
Read Moreपूछता क्यों शेष कितनी रात ? अमर सम्पुट में ढला तू, छू नखों की कांति…
Read Moreबाँच ली मैंने व्यथा की बिन लिखी पाती नयन में ! मिट गए पदचिह्न जिन…
Read Moreदीप मेरे जल अकम्पित, धुल अचंचल ! सिन्धु का उच्छ्वास घन है, तड़ित् तम का…
Read Moreविजयनी तेरी पताका! तू नहीं है वस्त्र तू तो मातृ भू का ह्रदय ही है,…
Read Moreजो कहा रूक-रूक पवन ने जो सुना झुक-झुक गगन ने, साँझ जो लिखती अधूरा, प्रात…
Read Moreतू धूल-भरा ही आया! ओ चंचल जीवन-बाल! मृत्यु जननी ने अंक लगाया! साधों ने पथ…
Read Moreजब यह दीप थके तब आना यह चंचल सपने भोले हैं, दृगजल पर पाले मैंने…
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