राज़े-हस्ती क़ज़ा से पूछूँगा
राज़े-हस्ती क़ज़ा से पूछूँगा मौत क्या है बक़ा से पूछूँगा हुस्न में शोखियाँ भी हैं…
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Read Moreबक़ा का लुत्फ भी तो मौत की मंज़िल से उठता है तहे-दरया जो डूबा था…
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Read Moreजुदा वो होते तो हम उन की जुस्तजू करते अलग नहीं हैं तो फिर किस…
Read Moreजुदा वो होते तो हम उन की जुस्तजू करते अलग नहीं हैं तो फिर किस…
Read Moreघटा आ गयी झूम कर आसमां पर बरसने लगा शैख़ पीरे-मुगां पर क़फ़स के लिए…
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Read Moreज़ेरे-ज़मीं कभी, भी सिद्रा-नशीं हूँ मैं अब और क्या बताऊं कहां का मकीं हूँ मैं…
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