वाचाल
‘ मोर को मार्जार-रव क्यों कहते हैं मां ‘ ‘ वह बिल्लीव की तरह बोलता…
Read Moreछेड़ो हे वह गान अंतत्तोद्भव अकल्प वह गान विश्व ताप से शून्य गह्वरों में गिरि…
Read Moreचिर रमणीय बसंत ग्रीष्म वर्षा ऋतु सुखमय स्निग्ध शरद हेमंत शिशिर रमणीय असंशय! मधु केंद्रों…
Read Moreअमित तेज तुम, तेज पूर्ण हो जनगण जीवन दिव्य वीर्य तुम वीर्य युक्त हों सबके…
Read Moreइन्द्र सतत सत्पथ पर देवें मर्त्य हम चरण दिव्य तुम्हारे ऐश्वर्यों को करें नित ग्रहण!…
Read Moreआज देवियों को करता मन भूरि रे नमन चिन्मयि सृजन शक्तियाँ जो करतीं जगत सृजन!…
Read Moreइन्द्रदेव तुम स्वभू सत्य सर्वज्ञ दिव्य मन स्वर्ग ज्योति चित् शक्ति मर्त्य में लाते अनुक्षण!…
Read Moreवेद ऋचाएँ अक्षर परम व्योम में जीवित निखिल देवगण चिर अनादि से जिसमें निवसित! जिसे…
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