वसन्त-श्री
उस फैली हरियाली में, कौन अकेली खेल रही मा! वह अपनी वय-बाली में? सजा हृदय…
Read Moreउस फैली हरियाली में, कौन अकेली खेल रही मा! वह अपनी वय-बाली में? सजा हृदय…
Read Moreझर पड़ता जीवन-डाली से मैं पतझड़ का-सा जीर्ण-पात!– केवल, केवल जग-कानन में लाने फिर से…
Read Moreमा! मेरे जीवन की हार तेरा मंजुल हृदय-हार हो, अश्रु-कणों का यह उपहार; मेरे सफल-श्रमों…
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