तुम्हारी आँखों का आकाश,
तुम्हारी आँखों का आकाश, सरल आँखों का नीलाकाश- खो गया मेरा खग अनजान, मृगेक्षिणि! इनमें…
Read Moreतुम्हारी आँखों का आकाश, सरल आँखों का नीलाकाश- खो गया मेरा खग अनजान, मृगेक्षिणि! इनमें…
Read Moreभावी पत्नी के प्रति प्रिये, प्राणों की प्राण! न जाने किस गृह में अनजान छिपी…
Read Moreकब से विलोकती तुमको ऊषा आ वातायन से? सन्ध्या उदास फिर जाती सूने-गृह के आँगन…
Read Moreतुम मेरे मन के मानव, मेरे गानों के गाने; मेरे मानस के स्पन्दन, प्राणों के…
Read Moreविहग, विहग, फिर चहक उठे ये पुंज-पुंज, कल-कूजित कर उर का निकुंज, चिर सुभग, सुभग!…
Read Moreजग के दुख-दैन्य-शयन पर यह रुग्णा जीवन-बाला रे कब से जाग रही, वह आँसू की…
Read Moreगाता खग प्रातः उठकर— सुन्दर, सुखमय जग-जीवन! गाता खग सन्ध्या-तट पर— मंगल, मधुमय जग-जीवन! कहती…
Read Moreसुन्दर मृदु-मृदु रज का तन, चिर सुन्दर सुख-दुख का मन, सुन्दर शैशव-यौवन रे सुन्दर-सुन्दर जग-जीवन!…
Read Moreक्या मेरी आत्मा का चिर-धन? मैं रहता नित उन्मन, उन्मन! प्रिय मुझे विश्व यह सचराचर,…
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