जीवन की चंचल सरिता में
जीवन की चंचल सरिता में फेंकी मैंने मन की जाली, फँस गईं मनोहर भावों की…
Read Moreजीवन की चंचल सरिता में फेंकी मैंने मन की जाली, फँस गईं मनोहर भावों की…
Read Moreअलि! इन भोली बातों को अब कैसे भला छिपाऊँ! इस आँख-मिचौनी से मैं कह? कब…
Read Moreआँखों की खिड़की से उड़-उड़ आते ये आते मधुर-विहग, उर-उर से सुखमय भावों के आते…
Read Moreकलरव किसको नहीं सुहाता? कौन नहीं इसको अपनाता? यह शैशव का सरल हास है, सहसा…
Read Moreरूप-तारा तुम पूर्ण प्रकाम; मृगेक्षिणि! सार्थक नाम। एक लावण्य-लोक छबिमान, नव्य-नक्षत्र समान, उदित हो दृग-पथ…
Read Moreआज नव-मधु की प्रात झलकती नभ-पलकों में प्राण! मुग्ध-यौवन के स्वप्न समान,– झलकती, मेरी जीवन-स्वप्न!…
Read Moreआज रहने दो यह गृह-काज, प्राण! रहने दो यह गृह-काज! आज जाने कैसी वातास छोड़ती…
Read Moreनवल मेरे जीवन की डाल बन गई प्रेम-विहग का वास! आज मधुवन की उन्मद वात…
Read Moreमुसकुरा दी थी क्या तुम, प्राण! मुसकुरा दी थी आज विहान? आज गृह-वन-उपवन के पास…
Read Moreनील-कमल-सी हैं वे आँख! डूबे जिनके मधु में पाँख— मधु में मन-मधुकर के पाँख! नील-जलज-सी…
Read More