तितली
नीली, पीली औ’ चटकीली पंखों की प्रिय पँखड़ियाँ खोल, प्रिय तिली! फूल-सी ही फूली तुम…
Read Moreद्वाभा के एकाकी प्रेमी, नीरव दिगन्त के शब्द मौन, रवि के जाते, स्थल पर आते…
Read Moreछाया खोलो, मुख से घूँघट खोलो, हे चिर अवगुंठनमयि, बोलो! क्या तुम केवल चिर-अवगुंठन, अथवा…
Read Moreनिर्वाणोन्मुख आदर्शों के अंतिम दीप शिखोदय!– जिनकी ज्योति छटा के क्षण से प्लावित आज दिगंचल,–…
Read Moreप्राण! तुम लघु लघु गात! नील नभ के निकुंज में लीन, नित्य नीरव, नि:संग नवीन,…
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