विजयी मयूर
तू गरजा, गरज भयंकर थी, कुछ नहीं सुनाई देता था। घनघोर घटाएं काली थीं, पथ…
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Read Moreभैया कृष्ण ! भेजती हूँ मैं राखी अपनी, यह लो आज। कई बार जिसको भेजा…
Read Moreबहिन आज फूली समाती न मन में। तड़ित आज फूली समाती न घन में।। घटा…
Read Moreयह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे। मैं भी उस पर बैठ कन्हैया…
Read Moreयह मुरझाया हुआ फूल है, इसका हृदय दुखाना मत। स्वयं बिखरनेवाली इसकी, पँखड़ियाँ बिखराना मत॥…
Read Moreमेरे भोले सरल हृदय ने कभी न इस पर किया विचार- विधि ने लिखी भाल…
Read Moreमुझे कहा कविता लिखने को, लिखने मैं बैठी तत्काल। पहिले लिखा- ‘‘जालियाँवाला’’, कहा कि ‘‘बस,…
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