दश्त में क़ैस नहीं कोह पे फ़रहाद नही
दश्त में क़ैस नहीं कोह पे फ़रहाद नहीं है वही इश्क़ की दुनिया मगर आबाद…
Read Moreदश्त में क़ैस नहीं कोह पे फ़रहाद नहीं है वही इश्क़ की दुनिया मगर आबाद…
Read Moreनग़्मे हवा ने छेड़े फ़ितरत की बाँसुरी में, पैदा हुईं ज़बानें जंगल की ख़ामुशी में…
Read Moreगेसू को तिरे रुख़ से बहम होने न देंगे । हम रात को ख़ुर्शीद में…
Read Moreहम आँखों से भी अर्ज़-ए-तमन्ना नहीं करते । मुबहम-सा इशारा भी गवारा नहीं करते ।…
Read More कैसा संत हमारा गांधी कैसा संत हमारा! दुनिया गो थी दुश्मन उसकी दुश्मन था…
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