गगन का चाँद,
रात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!…
Read Moreरात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!…
Read Moreरात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!…
Read Moreपर्वत पर, शायद, वृक्ष न कोई शेष बचा, धरती पर, शायद, शेष बची है नहीं…
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Read Moreकहता हूँ¸ ओ मखमल–भोगियो। श्रवण खोलो¸ रूक सुनो¸ विकल यह नाद कहां से आता है।…
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Read Moreजला अस्थियाँ बारी-बारी चिटकाई जिनमें चिंगारी, जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर लिए बिना गर्दन का…
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