हिमालय
मेरे नगपति! मेरे विशाल! साकार, दिव्य, गौरव विराट्, पौरूष के पुन्जीभूत ज्वाल! मेरी जननी के…
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Read Moreव्योम-कुंजों की परी अयि कल्पने व्योम-कुंजों की परी अयि कल्पने ! भूमि को निज स्वर्ग…
Read Moreव्योम-कुंजों की परी अयि कल्पने व्योम-कुंजों की परी अयि कल्पने ! भूमि को निज स्वर्ग…
Read Moreभावों के आवेग प्रबल मचा रहे उर में हलचल। कहते, उर के बाँध तोड़ स्वर-स्त्रोत्तों…
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