पाटलिपुत्र की गंगा से
संध्या की इस मलिन सेज पर गंगे ! किस विषाद के संग, सिसक-सिसक कर सुला…
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Read Moreसिमट विश्व-वेदना निखिल बज उठी करुण अन्तर में, देव ! हुंकरित हुआ कठिन युगधर्म तुम्हारे…
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Read Moreमैं पतझड़ की कोयल उदास, बिखरे वैभव की रानी हूँ मैं हरी-भरी हिम-शैल-तटी की विस्मृत…
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Read Moreप्रेम का सौदा सत्य का जिसके हृदय में प्यार हो, एक पथ, बलि के लिए…
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Read Moreआज न उडु के नील-कुंज में स्वप्न खोजने जाऊँगी, आज चमेली में न चंद्र-किरणों से…
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