गा रही कविता युगों से मुग्ध हो
गा रही कविता युगों से मुग्ध हो, मधुर गीतों का न पर, अवसान है। चाँदनी…
Read Moreगा रही कविता युगों से मुग्ध हो, मधुर गीतों का न पर, अवसान है। चाँदनी…
Read Moreगा रही कविता युगों से मुग्ध हो, मधुर गीतों का न पर, अवसान है। चाँदनी…
Read Moreमृत्यु-भीत शत-लक्ष मानवों की करुणार्द्र पुकार! ढह पड़ना था तुम्हें अरी ! ओ पत्थर की…
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Read Moreहिल रहा धरा का शीर्ण मूल, जल रहा दीप्त सारा खगोल, तू सोच रहा क्या…
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Read Moreरच फूलों के गीत मनोहर. चित्रित कर लहरों के कम्पन, कविते ! तेरी विभव-पुरी में…
Read Moreसंध्या की इस मलिन सेज पर गंगे ! किस विषाद के संग, सिसक-सिसक कर सुला…
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