विपक्षिणी
क्षमा करो मोहिनी विपक्षिणी! अब यह शत्रु तुम्हारा हार गया तुमसे विवाद में मौन-विशिख का…
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Read Moreराजमहल के वातायन पर बैठी राजकुमारी, कोई विह्वल बजा रहा था नीचे वंशी प्यारी। “बस,…
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Read Moreउठो, क्षितिज-तट छोड़ गगन में कनक-वरण घन हे! बरसो, बरसो, भरें रंग से निखिल प्राण-मन…
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Read Moreकिस स्वप्न-लोक से छवि उतरी? ऊपर निरभ्र नभ नील-नील, नीचे घन-विम्बित झील-झील। उत्तर किरीट पर…
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