मनुष्य
मनुष्य कैसी रचना! कैसा विधान! हम निखिल सृष्टि के रत्न-मुकुट, हम चित्रकार के रुचिर चित्र,…
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Read Moreमनुष्य कैसी रचना! कैसा विधान! हम निखिल सृष्टि के रत्न-मुकुट, हम चित्रकार के रुचिर चित्र,…
Read Moreपूर्णचन्द्र-चुम्बित निर्जन वन, विस्तृत शैल प्रान्त उर्वर थे; मसृण, हरित, दूर्वा-सज्जित पथ, वन्य कुसुम-द्रुम इधर-उधर…
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Read Moreनवल उर में भर विपुल उमंग, विहँस कल्पना-कुमारी-संग, मधुरिमा से कर निज शृंगार, स्वर्ग के…
Read Moreनवल उर में भर विपुल उमंग, विहँस कल्पना-कुमारी-संग, मधुरिमा से कर निज शृंगार, स्वर्ग के…
Read Moreअवनी के नक्षत्र! प्रकृति के उज्ज्वल मुक्ताहार! उपवन-दीप! दिवा के जुगनू! वन के दृग सुकुमार!…
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