मरण
लगी खेलने आग प्रकट हो थी विलीन जो तन में; मेरे ही मन के पाहुन…
Read Moreमैं वरुण भानु-सा अरुण भूमि पर उतरा रुद्र-विषाण लिए, सिर पर ले वह्नि-किरीट दीप्ति का…
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Read Moreदूर देश के अतिथि व्योम में छाए घन काले सजनी, अंग-अंग पुलकित वसुधा के शीतल,…
Read Moreअंतरवासिनी अधखिले पद्म पर मौन खड़ी तुम कौन प्राण के सर में री? भीगने नहीं…
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