बटोही, धीरे-धीरे गा।
बटोही, धीरे-धीरे गा। बोल रही जो आग उबल तेरे दर्दीले सुर में, कुछ वैसी ही…
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Read Moreवह प्रदीप जो दीख रहा है झिलमिल, दूर नहीं है; थककर बैठ गये क्या भाई!…
Read Moreओ अशेष! निःशेष बीन का एक तार था मैं ही! स्वर्भू की सम्मिलित गिरा का…
Read Moreअचेतन मृत्ति, अचेतन शिला। रुक्ष दोनों के वाह्य स्वरूप, दृश्य – पट दोनों के श्रीहीन;…
Read Moreतिमिर में स्वर के बाले दीप, आज फिर आता है कोई। ’हवा में कब तक…
Read Moreकात रही सोने का गुन चाँदनी रूप-रस-बोरी; कात रही रुपहरे धाग दिनमणि की किरण किशोरी।…
Read Moreआशीर्वचन कहो मंगलमयि, गायन चले हृदय से, दूर्वासन दो अवनि। किरण मृदु, उतरो नील निलय…
Read Moreसूखे विटप की सारिके ! उजड़ी-कटीली डार से मैं देखता किस प्यार से पहना नवल…
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