सरहद के पार से
जन्मभूमि से दूर, किसी बन में या सरित-किनारे, हम तो लो, सो रहे लगाते आजादी…
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Read Moreधुँधली हुईं दिशाएँ, छाने लगा कुहासा, कुचली हुई शिखा से आने लगा धुआँ-सा। कोई मुझे…
Read Moreयुद्ध की इति हो गई; रण-भू श्रमित, सुनसान; गिरिशिखर पर थम गया है डूबता दिनमान–…
Read More‘जय हो’, खोलो अजिर-द्वार मेरे अतीत ओ अभिमानी! बाहर खड़ी लिये नीराजन कब से भावों…
Read Moreछिप जाऊँ कहाँ तुम्हें लेकर? इस विष का क्या उपचार करूँ? प्यारे स्वदेश! खाली आऊँ?…
Read Moreसारी दुनिया उजड़ चुकी है, गुजर चुका है मेला; ऊपर है बीमार सूर्य नीचे मैं…
Read Moreरात यों कहने लगा मुझसे गगन का चाँद, आदमी भी क्या अनोखा जीव होता है!…
Read Moreजा रही देवता से मिलने? तो इतनी कृपा किये जाओ। अपनी फूलों की डाली में…
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