गाँधी / नये सुभाषित
(१) छिपा दिया है राजनीति ने बापू! तुमको, लोग समझते यही कि तुम चरखा-तकली हो।…
Read More(१) छिपा दिया है राजनीति ने बापू! तुमको, लोग समझते यही कि तुम चरखा-तकली हो।…
Read Moreप्रेम के नैराश्य की कविता लिखो तो मार्क्स कहते हैं कि यह सब बुर्जुआपन है।…
Read Moreप्रेम के नैराश्य की कविता लिखो तो मार्क्स कहते हैं कि यह सब बुर्जुआपन है।…
Read More(१) वृद्धि पर है कर, मगर, कल-कारखाने भी बढ़े हैं; हम प्रगति की राह पर…
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