जो न प्रिय पहिचान पाती।
जो न प्रिय पहिचान पाती। दौड़ती क्यों प्रति शिरा में प्यास विद्युत-सी तरल बन क्यों…
Read Moreजो न प्रिय पहिचान पाती। दौड़ती क्यों प्रति शिरा में प्यास विद्युत-सी तरल बन क्यों…
Read Moreजो न प्रिय पहिचान पाती। दौड़ती क्यों प्रति शिरा में प्यास विद्युत-सी तरल बन क्यों…
Read Moreमैं न यह पथ जानती री! धर्म हों विद्युत् शिखायें, अश्रु भले बे आज अग-जग…
Read Moreमैं न यह पथ जानती री! धर्म हों विद्युत् शिखायें, अश्रु भले बे आज अग-जग…
Read Moreसिरमौर सा तुझको रचा था विश्व में करतार ने, आकृष्ट था सब को किया तेरे,…
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