ऐ साक़ी-ए-मह-वश ग़म-ए-दौराँ नहीं उठता
ऐ साक़ी-ए-मह-वश ग़म-ए-दौराँ नहीं उठता दुर्वेश के हुज्रे से ये मेहमाँ नहीं उठता कहते थे…
Read Moreऐ साक़ी-ए-मह-वश ग़म-ए-दौराँ नहीं उठता दुर्वेश के हुज्रे से ये मेहमाँ नहीं उठता कहते थे…
Read Moreबस इस क़दर है ख़ुलासा मेरी कहानी का के बन के टूट गया इक हुबाब…
Read Moreआगही में इक ख़ला मौजूद है इस का मतलब है ख़ुदा मौजूद है है यक़ीनन…
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