सिंहासन खाली करो कि जनता आती है ।
सदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; दो राह,…
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Read Moreवैराग्य छोड़ बाँहों की विभा सम्भालो, चट्टानों की छाती से दूध निकालो, है रुकी जहाँ…
Read Moreचूहे ने यह कहा कि चूहिया! छाता और घड़ी दो, लाया था जो बड़े सेठ…
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Read Moreएक काबुली वाले की कहते हैं लोग कहानी, लाल मिर्च को देख गया भर उसके…
Read Moreतुझको या तेरे नदीश, गिरि, वन को नमन करूँ मैं। मेरे प्यारे देश! देह या…
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Read Moreउड़ी एक अफवाह, सूर्य की शादी होने वाली है, वर के विमल मौर में मोती…
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Read Moreहार कर बैठा चाँद एक दिन, माता से यह बोला, ‘‘सिलवा दो माँ मुझे ऊन…
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