झील
मत छुओ इस झील को। कंकड़ी मारो नहीं, पत्तियाँ डारो नहीं, फूल मत बोरो। और…
Read Moreयह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिस्र गगन में कूक रही क्यों नियति व्यंग से…
Read Moreयह कैसी चांदनी अम के मलिन तमिस्र गगन में कूक रही क्यों नियति व्यंग से…
Read Moreसदियों की ठण्डी-बुझी राख सुगबुगा उठी, मिट्टी सोने का ताज पहन इठलाती है; दो राह,…
Read Moreवैराग्य छोड़ बाँहों की विभा सम्भालो, चट्टानों की छाती से दूध निकालो, है रुकी जहाँ…
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