मनुष्यता
है बहुत बरसी धरित्री पर अमृत की धार; पर नहीं अब तक सुशीतल हो सका…
Read Moreएक पढ़क्कू बड़े तेज थे, तर्कशास्त्र पढ़ते थे, जहाँ न कोई बात, वहाँ भी नए…
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Read Moreवैराग्य छोड़ बाँहों की विभा संभालो चट्टानों की छाती से दूध निकालो है रुकी जहाँ…
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