साध
मृदुल कल्पना के चल पँखों पर हम तुम दोनों आसीन। भूल जगत के कोलाहल को…
Read Moreसभा सभा का खेल आज हम खेलेंगे जीजी आओ, मैं गाधी जी, छोटे नेहरू तुम…
Read Moreसोया था संयोग उसे किस लिए जगाने आए हो? क्या मेरे अधीर यौवन की प्यास…
Read Moreआ रही हिमालय से पुकार है उदधि गरजता बार बार प्राची पश्चिम भू नभ अपार;…
Read Moreतू गरजा, गरज भयंकर थी, कुछ नहीं सुनाई देता था। घनघोर घटाएं काली थीं, पथ…
Read Moreबहिन आज फूली समाती न मन में। तड़ित आज फूली समाती न घन में।। घटा…
Read Moreभैया कृष्ण ! भेजती हूँ मैं राखी अपनी, यह लो आज। कई बार जिसको भेजा…
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