हे मेरे घनश्याम! हृदयाकाश पर आया करो।
ग्रीष्म ऋतू कलिकाल की है धूप छाया करो॥
दामिनी के बिन दया जल दान दे सकते नहीं।
इसलिए श्री राधिका को साथ में लाया करो॥
जिसकी गर्जन में सरस अनुराग की ध्वनि भरी।
उस मधुर मुरली से जन-मन मोर हरषाया करो॥
प्यास है जिनको तुम्हारे दर्शनों कि हो सदा।
उन त्रिशामय चातकों के दृग न तरसाया करो॥
प्रेम की अंकुर विरह की अग्नि में झुलसे नहीं।
यदि समय पर कुछ कृपा के ‘बिन्दु’ बरसाया करो॥

By shayar

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