हे नाथ!! पद कमल का मुझको पराग करना।
या गूँज मालिका के भीतर का त्याग करना॥
जिसको अधर पे धर के करते हो प्रेम वर्षा।
उस सरस बाँसुरी का मृदु मधुर राग करना॥
रामेश्वरी सहित तुम जिसमे विराजते हो।
ब्रजभूमि की वो लतिका तरु कुञ्ज बाग़ करना॥
या श्रीचरण महावर का ‘बिन्दु’ राग करना।
या गोपियों के सुंदर सिर का सुहाग करना॥