हरि बोल मेरी रसना घड़ी-घड़ी।
व्यर्थ बीताती है क्यों जीवन मुख मन्दिर में पड़ी-पड़ी॥
नित्य निकाल गोविन्द नाम की श्वास-श्वास से लड़ी-लड़ी।
जाग उठे तेरी ध्वनि सुनकर इस काया की कड़ी-कड़ी।
बरसा दे प्रभु नाम, सुधा रस ‘बिन्दु’ से झड़ी-झड़ी॥

By shayar

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *