सभी तुझसे कहते हैं हाल अपना-अपना।
दिखाते हैं तुमको कमाल अपना-अपना॥
है बाजार-ए-मजहब में हर दिल का सौदा।
बताते हैं सब सच्चा माल अपना-अपना॥
किसी में आकर फँसे इसलिए सब।
बिछते हैं सब उल्फ़त का जाल अपना-अपना॥
भरे सबकी आँखों में आँसू के कतरे।
गुहार अपना-अपना है माल अपना-अपना॥
खरीदे हैं दीनों के दृग ‘बिन्दु’ तूने।
पसंद अपनी-अपनी ख़याल अपना-अपना॥