सदा अपनी रसना को रसमय बनाकर,
हरि हर, हरि हर, हरि हर जपाकर।
इसी जप से कष्टों का कम भार होगा,
इसी जप से पापों का प्रतिकार होगा।
इसी जप से नर तन का श्रृंगार होगा,
इसी जप से तू प्रभु को स्वीकार होगा।
ये स्वासों की दिन रात माला बनाकर,
हरि हर, हरि हर, हरि हर जपाकर।
इसी तप से तू आत्म बलवान होगा,
इसी जप से तू कर्तव्य का ध्यान होगा,
इसी जप से संतुष्ट भगवान होगा,
अकेले ही या साथ सबको मिलाकर,
हरि हर, हरि हर, हरि हर जपाकर।
जो श्रद्धा से इस जप को रोज़ गाता,
तो उसका यही जप है जीवन विधाता,
यही जप पिता है यही जप है माता,
यही जप है इस जग में कल्याण दाता,
हरि का कोई रूप मन में बिठाकर,
हरि हर, हरि हर, हरि हर जपाकर।
ये जप जब तेरे मन को ललचा रहा हो,
वो रसिकों के रस पथ पर जा रहा हो,
मज़ा श्री हरि नाम का आ रहा हो,
हरि ही हरि हर तरफ़ छा रहा हो,
तो कुछ प्रेम ‘बिन्दु’ दृग से बहाकर,
हरि हर, हरि हर, हरि हर जपाकर।