संसार के करतार का साकार न होता,
तो उसका ये संसार भी साकार न होता।
साकार से जाहिर है निराकार की हस्ती,
साकार न होता तो निराकार न होता।
हम मान भी लेते कि वो दृष्टि से परे है,
आँखों में उसका अगर चमत्कार न होता।
व्यापक ही सही सबमें वो रहता मगर कहाँ,
रहने को अगर जिस्म का आधार नहीं होता।
आँखों से कभी निकलते नहीं ‘बिन्दु’ के नोटी,
निर्गुण से सगुण का बँधा तार न होता॥

By shayar

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